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बीएसए कार्यालय का भ्रस्टाचार: सरकारी धन को डकारने में बाबू को महारथ, पूर्वाधिकारियों का मिलता रहा संरक्षण

चार चार बीएसए का बीता कार्यकाल, लेकिन किसी ने नही किया कार्यवाही

लगातार 10 वर्ष से घर बैठकर पत्नी लेती रही तनख्वाह

पत्नी के नौकरी की तरह गाड़ी भी कागज पर दौड़ाकर करा रहा भुगतान

Chandauli news: “एक कहावत है सैंया भयो कोतवाल तो अब डर काहे का” यह कहावत बेसिक शिक्षा विभाग के भ्रस्टाचारियों पर सटीक बैठ रही है। कारण की यहां एमआईएस फीडिंग के लिए नियुक्त कर्मचारी को डीलिंग बाबू का काम दे दिया गया। उसके बाद तो अतिरिक्त प्रभार का काम देख रहा बाबू अतिरिक्त कारनामें कर धनागमन का ऐसा रास्ता बनाया की लक्ष्मी अधिकारियों के यहाँ कुंडली मार कर बैठ गयी। अधिकारियों को भी यह बाबू स्वजनों से भी ज्यादा प्रिय हो गया। फिर क्या था लगे हाथ इसने उन लाभांश में अपनी हिस्सेदारी भी तय कर ली। यह क्रम लंबे समय तक बना रहे इसके लिए कागज पर अपने पत्नी को नौकरी भी दिला दिया। जो लगभग दस वर्षों से घर बैठकर तनख्वाह लेती रही। लेकिन कोई भी जिम्मेदार इसे रोकने का कार्य नही किया। मामला उजागर होने पर फिर कार्यवाही की बजाय स्तीफा लिया गया। जिससे रिकवरी जैसी कार्यवाही से बचा जा सके।

यह कहानी  बेसिक विभाग के एमआईएस फीडिंग के नाम पर तैनात बाबू आनंद कुमार यादव की। जिनकी पत्नी उषा यादव पिछले 10 वर्ष पूर्व सहायक लेखाकार के पद पर आउटसोर्सिंग के तहत नौकरी पा गयी । उस समय फूलचंद यादव यहां बीएसए हुआ करते थे। आउट सोर्सिंग का काम रामाश्रय यादव देखते थे। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार भी रही। फिर क्या पूछना एक साथ ऐसा महासंगम का उद्भव हुआ कि इसकी बहती जलधारा में लोंगो ने जमकर गोता लगाया। अधिकारियों के बेहद करीब होने का सौभाग्यप्राप्त इस संविदाकर्मी बाबू पर साहब की विशेष कृपा शुरू हो गयी। फिर उसे अतिरिक्त कार्य भी दिया जाने लगा। इसी क्रम में आउट सोर्सिंग पटल भी मिल गया। फिर क्या था वही कहावत “सइयां को मिला प्रभार तो फिर पत्नी क्यों होगी परेशान” पाक कला में महारथ लेखाकार पत्नी के हाथों अपने व उच्चाधिकारियों के लिए टिफिन लाकर साहब को खुश करने का दौर शुरू हुआ। जिसके बाद अधिकारियों ने वाहन टेंडर का काम भी दे दिया। जिसका असर यह हुआ कि यहां पत्नी की तहत बाबू ने ठेकेदार से मिलकर गाड़ी भी कागज पर दौड़ा दिया। जो अनवरत चल रहा।

उसके बाद यहां चन्दना राम इकबाल यादव बीएसए बनकर आयीं, उनके बाद सन्तोष सिंह भोलेन्द्र प्रताप सिंह व सत्येंद्र सिंह बीएसए बनकर आये । तब तक विभागीय घालमेल तक अपने वट बृक्ष की जड़ को फैला चुके बाबू के इस घालमेल पर कोई हाथ नही डाला। इस तरह अधिकारी आते जाते रहे लेकिन कोई भी कार्यवाही करने की जहमत नही उठाया।

शहाबगंज में पोस्टिंग के दौरान विभागीय मनमुटाव के बाद यह बात सार्वजनिक हो गयी। जिसका जिलाधिकारी ने संज्ञान लिया। इसके बाद कार्यवाही करने की बजाय सहायक लेखाकार से स्तीफा लिया गया। इसके पीछे का कारण यह रहा कि विभागीय कार्यवाही में नो वर्क नो पे के तहत रिकवरी करनी पड़ती। जो राशि लगभग 10 लाख के उपर की है। ऐसे में स्तीफा दिलाकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

मृत्युंजय सिंह

मैं मृत्युंजय सिंह पिछले कई वर्षो से पत्रकारिता के क्षेत्र में विभिन्न राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक समाचार पत्रों में कार्य करने के उपरान्त न्यूज़ सम्प्रेषण के डिजिटल माध्यम से जुडा हूँ.मेरा ख़ास उद्देश्य जन सरोकार की ख़बरों को प्रमुखता से उठाना एवं न्याय दिलाना है.जिसमे आप सभी का सहयोग प्रार्थनीय है.

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