“रील” से पहचान बना रही युथ, आलोक ने ख़ुद की बनाई पहचान
18 वर्ष की उम्र, नेपाल तक के पहलवानो को पछाड़ा
Chanduli news: 23 वीं शदी के युवा अपनी ऊर्जा मोबाईल फोन में रील बनाने पर खर्च कर रहे है। जबकि जिले का एक ऐसा होनहार है जो अपनी संस्कृति को जिंदा रखा है। 18 कि उम्र में उसने न केवल प्रदेश में बल्कि नेपाल तक अपने ताकत का झंडा गाडा है।
पूत के पांव पालने में ही नजर आने लगते हैं’। इस कहावत को जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर दूर पिपरपतियां ग्राम निवासी आलोक यादव बखूबी चरितार्थ कर रहे है। 18 वर्ष की उम्र में आज के बच्चे जहाँ मोबाइल पर ब्यस्त है। कुछ को सुबह की धूप जब तक उनके शरीर को गर्मी न दे तब तक बिस्तर से उठ न सकें। इस सब विलासितापूर्ण जीवन को छोड़ आलोक सुबह साढे तीन बजे से उठकर लगभग दस किलोमीटर की दौड लगाने के लिए निकल पडते है।
दौड़ करने के बाद लगभग 10 किमी की दूरी मोटरसाइकिल से तयं करके यह सैयदराजा के पास बरंगा गांंव पहुंच कर बिना गद्दे वाले अखाड़े में लगभग चार घंटे तक जोर आजमाइश करता है। आलोक के इस जज्बे पर पिता मुरारी यादव खाने पीने का ध्यान रखते है। प्रतिदिन दस लीटर शुद्ध दूधबादाम, सौंफ,खरबूजे का बीज को काली मिर्च के साथ मिट्टी के खास पात्र में नीम की मोटी लकडी से घोंटकर उसे दिया जाता है। इस मिश्रण से आलोक के बदन में बेहिसाब ताकत आ गयी। पिता व कुछ रिश्तेदारों में भी आलोक में एक मजबूत पहलवान दिखा। पढने के समय इसके दंड बैठक करते देखकर मां मुन्नी देवी ने भी सोच लिया कि इसे तो पहलवान ही बनना है।
घर से पहलवान बनने की सहमति मिलते ही आसपास जब कोई कुश्ती के दांवपेंच सिखाने वाला नहीं मिला। तब यह घर से लगभग दस किलोमीटर दूर बरंगा गांव में पंडितजी के स्थापित अखाडे पर उस्ताद अरविन्द यादव के सानिध्य में पहुंच गया। आलोक के उत्साह व ललक को देखकर उस्ताद अरविंद ने अपना सभी कला-कौशल आलोक को सिखाया। इसका परिणाम हुआ कि यह अपने उम्र और वजन में बिहार के विभिन्न जगहों के अलावा राजस्थान, हिमाचल और मध्यप्रदेश में जाकर पहलवानों अपना झंडा गाड़ा। यही नहीं इस जोशीले नौजवान ने नेपाल में भी जाकर पहलवानों को पटखकर जिले का नाम रौशन किया है। बिना संसाधन। इसके मेहनत व लगन को देखकर चंदौली कोट निवासी विजय बहादुर सिंह कहते हैं कि अगर आलोक को गद्दे पर सही प्रशिक्षण और अन्य संसाधन मिल जाय। तब यह देश का नाम रौशन कर सकता है।