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बीएसए कार्यालय का भ्रस्टाचार: पटल सहायक ठेकेदार व बीइओ का संगठित हिस्सेदारी

जब नही मिला गाड़ी तो फिर लॉगबुक का कैसे हुआ सत्यापन

ज्वाइंट मजिस्ट्रेट को खण्ड शिक्षा अधिकारियों ने जबाब में दिया, नही मिलती थी नियमित गाड़ी

Chandauli news: बेसिक विभाग में वाहन का भुगतान मामले में 1करोड़ 84 लाख रुपया सरकारी धन के बंदरबाट का मामला प्रकाश में आया है। जिसकी जांच जिलाधिकारी निखिल टी फुन्डे ने ज्वाइंट मजिस्ट्रेट हर्षिका सिंह से करा रहे। जांच मिलने के बाद ज्वाइंट ने खण्ड शिक्षा अधिकारियों को नोटिस भेजकर जबाब मांगा। जिसमें खण्ड शिक्षा अधिकारियों ने जो जबाब दिया उससे मामले का जांच कर रही टीम का माथा ठनक गया।

फोटो:  बीएसए के लिए बिना ट्रांसपोर्ट नम्बर की लगी गाड़ी

सूत्रों की माने तो ज्वाइंट मजिस्ट्रेट को जो जबाब मिला है उसमें खण्ड शिक्षा अधिकारियों ने जबाब दिया है कि उन्हें ठेकेदार द्वारा नियमित रूप से वाहन नही मिलता था। जब कभी भी वाहन मिलते थे वह भी अलग अलग नम्बर के। लेकिन लॉगबुक को खण्ड शिक्षा अधिकारी सत्यापित किये हुए है। जिसके आधार पर वाहन का भुगतान होता आया है। 30 मार्च के बाद टेंडर का समय सीमा समाप्त हो गया। अधिसूचना का हवाला देते हुए अगतिम आदेश तक वाहन पुराने टेंडर के आधार पर चलाने के लिए अनुमति ले ली गयी है।  लेकिन चुनाव बीतने के तीन माह बाद भी अब तक नया टेंडर नही कराया गया। ऐसे में सरकारी धन का संगठित गिरोह बनाकर लूट किया जा रहा है।

यही नही इक्का दुक्का अधिकारियों ने अपनी कलम फंसता देख गाड़ी की मांग कर दिए। जिस पर बिना मानक वाली गाड़ी बीआरसी सेंटर पर खड़ा करा दी गयी। जबकि बिना ट्रांसपोर्ट नम्बर की गाड़ियां किसी भी स्थिति सरकारी विभागों मे न लगाएं जाने का निदेश दिया गया है। बावजूद इसके मानक की अनदेखी की जा रही।

साहब के घर तक सेवा देते है ठेकेदार इसके बदले होता है संगठित लूट:

बेसिक विभाग के अधिकारियों को चलने के लिए वाहन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी संभालने वालों के सेवा सत्कार से  बेसिक शिक्षा अधिकारी इस कदर प्रसन्न होते है कि इस तरह के घालमेल को नजर अंदाज करना उनके बाई हाथ का खेल है। सूत्रों की माने तो एक दो खण्ड शिक्षा अधिकारियों ने गाड़ी न मिलने की शिकायत किया तो साहब ने मैनेज कर काम चलाने की बात कह कर मामला दबा दिया। इसके पीछे का कारण यह है कि साहब मुख्यालय से सुदूर वाराणसी में निवास करते है। अब उनको घर से गाड़ी लेके आती है। जबकि टेंडर में   अधिकतम 1500 किमी चलने का शर्त है। उधर ठेकेदार नियम कानून के तहत अपना वाहन चलाने लगे तो फिर साहब को भी एक दूसरी गाड़ी व चालक रखना पड़ेगा। यह सब बचाने के लिए सरकारी धन का संगठित तरिके से लूट किया जा रहा है।

आगे पढ़ें:  गाड़ी मालिक ठेकेदार व विभाग पर करा सकते है मुकदमा news place. in पॉर्ट 4

मृत्युंजय सिंह

मैं मृत्युंजय सिंह पिछले कई वर्षो से पत्रकारिता के क्षेत्र में विभिन्न राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक समाचार पत्रों में कार्य करने के उपरान्त न्यूज़ सम्प्रेषण के डिजिटल माध्यम से जुडा हूँ.मेरा ख़ास उद्देश्य जन सरोकार की ख़बरों को प्रमुखता से उठाना एवं न्याय दिलाना है.जिसमे आप सभी का सहयोग प्रार्थनीय है.

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