सर्किल अधिकारियों के आरोप की जांच नोडल अधिकारियों के टेबल पर फंसी
Chandauli news: लोक सभा चुनाव के लिए तीन माह का आचार संहिता भ्रस्ट अधिकारी व कर्मचारियों के लिए वरदान हो गया। स्थिति यह हुई कि तमाम रिपोर्ट के बाद भी इन लोंगो पर कार्यवाही नही हो सकी। उधर कुछ जांच की फाइलें भी आचार संहिता के बहाने टेबल की शोभा बढ़ा रही थी। हालांकि अब आचार संहिता समाप्त हो गया है। ऐसे में यह फ़ाइल टेबल से आगे बढ़ेंगी या फिर इन तीन माह में आरोपों पैरवी के आगे दम तोड़ दिया है यह भविष्य के गर्त में है।
केस 1: सकलडीहा कस्बा में अवैध शराब बिक्री की शिकायत पर जब पुलिस की टीम पहुंची थी तो शराब तश्कर ने घर के अंदर से दरवाजा बंद कर दिया। यहां तक कि जबरदस्ती घर में छापेमारी करने की शिकायत उसने एसपी से लेकर पुलिस मुख्यालय तक दिया। स्थिति यह हुई कि कुछ देर के बाद पुलिस को बैरंग वापस आना पड़ा। इस मामले में पुलिस उपाधीक्षक रघुराज ने सकलडीहा थाने के कारखास के खिलाफ एक रिपोर्ट पुलिस अधीक्षक को 19 अप्रैल के दिन सौंप दिए। जिसकी जांच पुलिस अधीक्षक ने सदर सीओ को दे दिया। अब सीओ की रिपोर्ट के बाद भी जांच अब तक आचार संहिता के नाम अधर में लटकी पड़ी है।
केस 2: 19 अप्रैल को चन्द्रप्रभा चौकी इंचार्ज पर वनतुलसी घास की तश्करी में लगे एक ब्यापारी से मारपीट की शिकायत मिली थी, इसके बाद ही नौगढ़ सीओ के यहां दर्जनों की संख्या में पहुंचे वनवासियों ने महुआ बटोरने के नाम पर प्रति ब्यक्ति 10₹ व प्रति पेड़ 50₹ कमीशन लेने का आरोप लगया। जिसपर जब सीओ ने जांच किया तो आरोप सही निकला। इस पर चौकी इंचार्ज व एसओ के खिलाफ सीओ नौगढ़ कृष्ण मुरारी शर्मा ने रिपोर्ट दे दिया।। यह मामला भी अचार संहिता के नाम जांच सीओ चकिया के यहां लंबित पड़ी है।
केस 3: 18 मई के दिन एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। जिसमें गौ तश्करों के गाड़ी से गौ वंश पार कराये जा रहे है। इसके बदले में अलीनगर, सदर कोतवाली, पीआरबी व सैयदराजा में तश्कर पैसा देकर बेखौफ गाड़ी को बिहार ले जाने में सफल दिखाई दे रहे है। वीडियो जारी होने के बाद इस मामले को उच्चाधिकारियों ने संज्ञान लिया। इसपर कार्यवाही के नाम पर जांच सीओ सदर से कराकर कार्यवाही का संकेत दिया गया। लेकिन अब तक ना ही जांच रिपोर्ट मिली ना ही कोई कार्यवाही हुई।
इसके साथ ही कई ऐसे मामले है जिसमें आचार संहिता के नाम पर जांच टेबलों पर अटका पड़ा हुआ है। सूत्रों की माने तो अचार संहिता में कार्यवाही के लिए आयोग से अनुमति लेनी पड़ती है। ऐसे में बार बार कार्यवाही के नाम पर अनुमति विभागीय साख पर बट्टा लगाने जैसा है। इसलिए अधिकारी अनुमति के लिए अनुमोदन नही करते। इस बात की जानकारी भ्रस्टाचार के आकंठ में डूबे लोंगो को बखूबी पता है। इसलिए यह लोग अपने तीन माह के इस स्वर्णिम कार्यकाल का भरपूर सदुपयोग किये।