विकट परिस्थिति उतपन्न होने पर मरीजो से करते है बदतमीजी
Chandauli news: जिला मुख्यालय पर ट्रामा अस्पताल के नाम पर मरीजों को धोखा देने वाले सूर्या अस्पताल के कारनामे का राज दिन प्रतिदिन खुलता जा रहा है। यहाँ मरीजो का ईलाज करने के लिए अस्पताल संचालक ठेका करते है। बिना ठेका के भर्ती मरीजों का पैथोलाजी में जांच कराने के नाम पर शोषण कर लिया जाता है। उनके इस कारनामे का विरोध करने वाले मरीज व परिजनों के साथ अस्पताल में रखे बॉडी बिल्डर के बदतमीजी का शिकार भी होना पड़ता है।
सूर्या हॉस्पिटल में उच्च न्यायालय के शासकीय अधिवक्ता आशीष नागवंशी के परिवार में उनके छोटे भाई के पत्नी की तबियत खराब होने पर परिजन ईलाज के लिए ले आये। जहाँ बिना चिकित्सक के ही डेंगू पीड़ित को भर्ती कर लिया। जहाँ हालात चिंताजनक होने पर दूसरे दिन बिना ऑक्सीजन सपोट के ही रेफर कर दिया जिससे कुछ देर बाद विभा की मृत्यु हो गयी। इस मामले में शासकीय अधिवक्ता ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर मामले की जांच कराने की मांग किया। जांच करने पहुंची पांच सदस्यीय ने भारी अनियमितता मिलने का संकेत किया है। इस अस्पताल में ऐसी लापरवाही का यह आलम पहली बार नही मिला है। इसके पूर्व भी कई मामले ऐसे मिले जिसमे अस्पताल द्वारा ईलाज के नाम ठेका लिया गया। लेकिन लापरवाही का आलम यह रहा कि मरीज की हालत बिगड़ गयी। जब इसके विषय मे परिजनों ने विरोध किया तो अस्पताल संचालक के बॉडी बिल्डरों ने डॉक्टर के मौजूदगी में मरीज व उसके परिजनों से बदसलूकी भी किये।
सदर कोतवाली के सेवखर गांव के रामानुज पांडेय का सड़क दुर्घटना में बायां पैर फैक्चर हो गया। जिसके बाद फैक्चर अस्पताल के नाम से चर्चित इस अस्पताल में ईलाज के लिए परिजन व कुछ परिचित जो कि अस्पताल संचालक से भी परिचित थे। यह लोग लेकर पहुंचे। अस्पताल गेट पर पहुंचते ही पहले से ग्राहक के इंतजार में खड़े अस्पताल के अप्रशिक्षित कर्मचारी ईलाज के लिए गए मरीज के साथ ठेकेदारी शुरू कर दिए।
रामानुज पांडेय ने न्यूज प्लेस से अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया कि कैसे अस्पताल में उनके साथ इलाज के नाम पर शोषण का शिकार हुए। ऑपरेशन व रॉड सहित ईलाज के नाम पर 26800₹ का ठेका किये। जिसके बाद 17000₹ तत्काल जमा किया गया। दूसरे दिन ऑपरेशन किया जाना था लेकिन रात्रि के 01 बजे ऑपरेशन बिना परिजन के उपस्थिति में कर दिया। उसमें भी बिना चिकित्सक के कोई राजकुमार डूबे व दो स्टॉफ ने मिलकर ऑपरेशन कर दिया। 14 दिन तक अस्पताल में उन्हें रखा गया। इस दौरान पैर में सूजन काफी हो गया। जब इसके विषय मे डॉक्टर गौतम त्रिपाठी के किया गया तो वह न्यूरो के डॉक्टर से सम्पर्क कर उनके देखरेख में दवा चलाने की बात कह 14 दिन का समय ब्यतीत कर दिए। 14 दिन बाद रात्रि के 01 बजे डिस्चार्ज किया गया। जिसके बाद अस्पताल कर्मी जितेंद्र द्वारा 67839₹ का एक कागज पर बिल बनाकर पकड़ा दिए। अस्पताल के इस बिल पर जब पूछा तो इस राशि को जमा करने का दवाव बनाया गया।
उन्होंने बताया जिन परिचित लोंगो के कारण यहाँ आये थे जब उनसे संपर्क किया गया तो अस्पताल संचालक ने 52000₹ जमा कराया। इसके बाद 05 दिन की दवा देकर पुनः आने के लिए कहा गया। 05 दिन बाद जब दिखाने पहुंचा तो चिकित्सक से मिलने के लिए पहले 100₹ की पर्ची कटानी पड़ी। इसके बाद बिना डॉक्टर मिले ही एक्सरे व ब्लड जांच लिख दिया। लेकिन पैर की स्थिति ठीक न होने पर उन्हें एमआरआई कराने के लिए वाराणासी भेज दिया गया। यह क्रम निरन्तर कई बार हुआ। 21 अप्रैल को पुनः दिखाने के लिए गए। जहाँ 100 रुपये की पर्ची कटाने के बाद वही प्रक्रिया ब्लड जांच व एक्सरे आदि की जांच लिख दिया गया। इस जांच का जब विरोध किया तो डॉक्टर ने देखने से इंकार कर दिया। जब मरीज व परिजन ने इसका विरोध शुरू किया तो डॉक्टर गौतम के भाई आर एन त्रिपाठी व कुछ अन्य ने उनके साथ गाली गलौज करते हुए बाहर फेंकने की बात करते हुए कहा कि जहाँ मन करे वहां ईलाज कराये। यहाँ अब ईलाज नही होगी।
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