Chandauli news:कभी जनप्रतिनिधि के तौर पर स्वर्गीय पं.कमलापति त्रिपाठी ने यहां इतना काम कराया। जिससे उन्हें लोगों ने चंदौली के विश्वकर्मा की उपाधि दिया। विकास कार्य भी ऐसा कि जिले के हर वर्ग के लोग उससे आज भी लाभान्वित हो रहे हैं। पंडित जी इस जिले के निवासी नहीं थे। लेकिन उनका ह्रदय यहां की समस्याओं के समाधान को लेकर स्पंदित होता था। उसी धड़कन का परिणाम है कि सिंचाई के लिए नहरें हों, पंप कैनाल हो, शिक्षा के लिए स्कूल और कॉलेज के साथ साथ तकनीकी संस्थान हो, इलाज के लिए 100 बेड के हॉस्पिटल हो। इस तरह के तमाम ऐसे उल्लेखनीय कार्य हुए जिनका लाभ लोग पा रहे हैं।
वर्तमान में विकास कार्य को लेकर जनप्रतिनिधि सजग हो सके। सचेत होकर उन मांगों को पूरा करा सकें इसके लिए समाज के एक उच्चस्तरीय बुद्धिजीवी वर्ग को अपना काम छोड़कर सड़क पर उतरना पड़ता है। जब यह बुद्धिजीवी वर्ग संघर्ष करता है। तब शासन और प्रशासन में बैठे लोगों की नींद खुलती है। एक बार फिर अधिवक्ता वही सोए हुए लोगों को जगाने के लिए आंदोलन की राह पर निकले हुए हैं। जनपद न्यायालय भवन का निर्माण हो सके। इसके लिए जहां मांग और अधिवक्ताओं के संघर्ष का परिणाम है कि वह चंद कदम की दूरी पर पूरा होने की स्थिति में आ रहा है। वह स्थिति बन रही है कि जिससे विकास दिखने लगेगा।
वहीं जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का परिणाम है कि जहां स्कूल कॉलेज जो आज से 40- 50 साल पहले खुले थे। उनमें और विकास हो सके। इसके लिए कोई सोच नहीं बन पाई। विडंबना है कि राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में यहां 1993 से स्नातकोत्तर की कक्षाएं चल रही हैं। इसमें अंग्रेजी और अर्थशास्त्र के शिक्षकों की नियुक्ति स्थापना काल से अब तक करने की जरूरत नहीं समझी गयी है। इसके लिए शायद जनप्रतिनिधियों के एजेंडा में यह समस्या नहीं आती। इसी तरह से उसी महाविद्यालय के ठीक सामने चंदौली पॉलिटेक्निक है जहां 2016 -17 से ही 90 छात्राओं के लिए छात्रावास बनकर तैयार है। लेकिन कुछ धना भाव के कारण थोडा निर्माण अधूरा होने के कारण उस छात्रावास में छात्राएं नहीं रह पा रही हैं ।लगभग 200 छात्राएं जो यहां शिक्षार्थ हैं। उन्हें बाहर रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसके लिए पॉलिटेक्निक के पास पर्याप्त धनराशि भी है। लेकिन उसकी स्वीकृति चंद अधिकारियों की कलम चलने के बाद ही हो पाएगी। यह कलम किन कारणों से नहीं चल पा रही है। यह जानने के लिए जनप्रतिनिधियों ने कोई भी पहल करने की जरूरत नहीं समझी है। यहां जिला पुस्तकालय के लिए 2014 में ही 70 लाख रुपये की स्वीकृति हुई। प्रथम किस्त भी आयी। लेकिन पुस्तकालय का निर्माण आज तक नहीं हो पाया। यह बानगी है उन चंद कार्यों की जिन्हें जगाने के लिए जनप्रतिनिधियों को सचेत करने के लिए फिलहाल कोई दूर दूर तक नहीं दिखता। न्यायालय भवन निर्माण को लेकर अधिवक्ताओं ने जो प्रखर आंदोलन छेड़ा है। उसको लेकर जरूर जनप्रतिनिधियों के बीच पूरी हलचल मची हुई है ।अन्य समस्याओं को लेकर न तो कोई आवाज उठती है नहीं उसे सुलझाने के लिए कोई पहल हो पाती है। यही कारण है कि लगभग 26 वर्षों पूर्व बनाया जनपद आज भी विकास के मामले में आगे आने के बजाय पूरे उत्तर प्रदेश के 8 पिछड़े जिलों में शामिल बना हुआ है। आम व्यक्तियों का मानना है जनप्रतिनिधियों की उदासीनता, बेरुखी और उपेक्षा का भाव जब तक खत्म नहीं होगा। तब तक यह पिछड़ापन यथावत बना भी रहेगा।